छत्तीसगढ़ सिंधी पंचायत के ऑफिस के ऊपर समाज के लोगों का धर्म परिवर्तन हो रहा है क्या यह सही बात है ? महंत तुलसीदास जी

रायपुर:-  ,गंगा धाम उदासीन आश्रम संत नगर भोपाल के परम श्रधेय, मंहत सांई तुलसीदास उदासी जी का आगमन छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में हुआ इस अवसर पर दुर्गा माता मंदिर मढी़ लिली चौक ,गए वहां पर महंत अनंतपुरी गोस्वामी जी से सौजन्य मुलाकात की भेट की मंदिर में मथा टेका वह सामाजिक, देशहित के कई मुद्दों पर वार्तालाप किया इसी अवसर पर हमर संगवारी के प्रधान संपादक, विजय दुसेजा, विशेष रूप से संत जी से मुलाकात करने रायपुर पहुंचे वह उनसे समाज में हो रहे कई सारे घटनाक्रम कई सारे मुद्दों पर विशेष चर्चा की मंहत सांई तुलसी दास जी ने क्या-क्या कहा किस तरह उन्होंने समाज को जागृत करने के लिए जो बातें बताएं बेकाकी से उन्होंने हर सवाल का जवाब दिया सांई जी ने कहा कि जैसा कि हमने सुना है की छत्तीसगढ़ सिंधी पंचायत का जो कार्यालय है रायपुर उस कार्यालय के ऊपर में एक और ऑफिस है जहां पर एक विशेष धर्म के लोग वहां पर बैठते हैं और एक घटना का उन्होंने विवरण करते हुए बताया कि यह घटना कुछ लोगों ने उनको बताई है इस ऑफिस के नीचे में एक बार एक समाज का व्यक्ति गिर गया और उसे चोट लगी तो ऊपर से दो डॉक्टर तुरंत आए और उसकी चोट को साफ सफाई करके मलम पट्टी की और उसको अपने ऑफिस में ले गए और उससे प्यार से अच्छी-अच्छी बातें की वह उन्हें प्रलोभन के माध्यम से अपने प्यार के माध्यम से बातों के माध्यम से अपनी तरफ आकर्षित किया ताकि वह अपना धर्म छोड़कर हमारे धर्म में शामिल हो जाए यहां तक की कई लोगों को पैसा देकर भी धर्म परिवर्तन कराया जा रहा है ?
यह बातें संत जी को मालूम पड़ रही है तो क्या यह समाज के जो पंचायत के अध्यक्ष है उनको पता नहीं होगी? अगर है तो वह इस गंभीर मुद्दे पर समस्या पर क्या कर रहे हैं? सांई जी ने कहा कि पहले के वक्त में जो हमारे समाज के प्रमुख थे उनका एक अलग ही महत्व था मान सम्मान होता था इसका एक विशेष कारण भी था उस समय हम एक थे पंथो में बटे नहीं थे दूसरा उस समय पैसे के पीछे ज्यादा नहीं भागते थे और ज्यादा समय हम समाज को देते थे सब लोग एक साथ बैठते थे और समाज को मजबूत बनाने के लिए कई सारे मुद्दों पर चर्चा करते थे बातें होती थी और सभी एक मत से काम करते थे और किसी को भी कुर्सी की लालच नहीं थी,
कोई भी कुर्सी के पीछे नहीं भागते थे, समाज सेवा के पीछे भागते थे ,


पर आज जो हालात है आज जो कुर्सी पर बैठे हैं अध्यक्ष लोग वह अपनी कुर्सी को कैसे बनाए रखें वह कैसे 2 साल के बाद फिर से हमें मिले उसके पीछे लगे रहते हैं , ? और ज्यादा समय इसी कार्य में खर्च करते हैं और पैसा कमाने में चक्कर में , समाज सेवा में और समाज को मजबूत बनाने में उनका ध्यान नहीं जाता है उनका ध्यान कुर्सी को बचाने में ज्यादा लगा रहता है इसी कारण आज समाज के मुखी की इज्जत जो पहले जैसे मुखी की थी वैसी नहीं है, उन्होंने खुद अपने पांव में कुल्हाड़ी मारी है उन्हें जो ध्यान सेवा में लगाना चाहिए समाज को मजबूत करने में लगाना चाहिए समाज की कुरीतियों को दूर करने के लिए लगाना चाहिए वह ध्यान अपनी कुर्सी को बचाने और मजबूत करने में लगे रहते हैं ?
इसके कारण समाज में आज विकट कई सारी कृतियां आ गई है और हमारी पीढ़ी गलत राह पर चल पड़ी है सब लोग नहीं कुछ लोग लेकिन इसका असर धीरे धीरे बढ़ता जा रहा है हमारी बोली भाषा संस्कृति खतरे में पड़ चुकी है तिज त्योहार मनाना अब कम कर दिया हैं,
तो कैसे समाज मजबूत होगा,
और हम सिंधी ने अपने आप को संनातनी कहें सत्य भी यही है हम संनातन धर्म के मानने वाले लोग हैं सिंधी हमारी भाषा है हमारी बोली है और अगर आपको ऊपर जाना है ऊपर पहुंचना है अपने धर्म को मजबूत करना है और सभी से मिलजुल कर रहना है तो अपने आप को संनातनी ही कहना शुरू करें और सभी हिंदू धर्म जो भगवान हैं और उनके जन्म उत्सव हैं सब मनाऐ , सभी भाइयों से मिलजुल कर रहे इससे हमारा समाज भी मजबूत होगा और हमारा सनातन धर्म भी मजबूत होगा और भगवान झूलेलाल हमारे आराध्य देव हैं सिंधी समाज की कुलदेवी हिंगलाज माता है और इष्ट देव भगवान भोलेनाथ हैं, क्योंकि भगवान झूलेलाल का जन्म 1075 वर्ष पूर्व हुआ था उससे पहले भी हम भगवान भोलेनाथ की ही पूजा अराधना करते थे और संनातन धर्म को मानने वाले हर व्यक्ति का इष्ट देव भगवान भोलेनाथ ही हैं भगवान भोलेनाथ के ही कारण ब्रह्मा और विष्णु का” अवतार हुआ और सृष्टि की रचना हुई आज के समय में हमारे घर के भाई लोग , दुकान में ज्यादा समय देते हैं घर में समय कम देते हैं ध्यान कम देते हैं जिसका कारण घर की महिलाएं अन्य पंथो में जाना आरंभ कर दी दुसरे पंथो में उन्हें वह रोचकता वाली बातें सुनने को मिलती थी और कुछ अलग माहौल दिखता था जिसके कारण वे आकृशीत हुई ओर अन्य पंथो में जाना शुरू कर दिया और हमारे बच्चे बाहर में अन्य लोगों से मिलजुल कर बड़े होने लगे जिसके कारण उनका बाहर का जो बातें थी और जो माहौल था वह उसमें अपने आप ही घुल मिलकर आगे बढ़ने लगे जिसका नतीजा यह हुआ कि हमारी नई पीढ़ी अपनी भाषा संस्कृति को भूल गई और घर की महिलाएं भी बाहर निकाल कर अब सिंधी में बात नहीं कर अन्य भाषा में बात करने लगी , जिसका असर घर में भी पढ़ने लगा बच्चों को भी संस्कार जन्म से देना चाहिए और यह सिर्फ माता-पिता का धर्म नहीं बल्कि कर्तव्य भी है कि अपने इष्ट देव अपने आराध्य देव अपनी कुलदेवी के बारे में अपने तिज त्यौहार, संस्कृति भाषा के बारे में बच्चों को बताएं उनको समझाएं और उन्हें अपने संत महात्माओं के बारे में भी समझाएं और जहां भी सत्संग हो मंदिर में हो उन्हें लेकर जाएं ताकि उनका असर बच्चों को भी पड़े और वह भी संस्कारवान ज्ञानवान बने जितना ज्यादा समय हम सोशल मीडिया में व्यक्त करते हैं अगर उसका एक हिस्सा भी समय अगर हम बच्चों में देंगे तो हमारे बच्चे बड़े अच्छे संस्कारवान बनेंगे जहां भी आप दो महिलाएं चार महिलाएं 6 महिलाएं या 10 महिलाएं,या भाई लोग मिलते हैं तो आपस में अपनी मातृभाषा सिंधी में ही बात करें घर में भी बच्चों से सिंधी में बात करें और जो संत सिंधी में सत्संग कीर्तन करता है और ज्ञान भरी बातें बताता है उन संतों के सत्संग में जाना चाहिए संत की बातों पर अमल करना चाहिए बाहर का खाना दो-चार दिन अच्छा लगता है बाद में वह बेकार लगता है घूम फिर कर घर पर ही इंसान आता है घर का खाना ही खाता है तो अपने घर का खाना ही खाना चाहिए और कोई गुरु अगर आपको समझाता है अगर डाटता भी है तो वह आपके भले के लिए करता है हर समय मीठा-मीठा खाने से बीमारियां फैलने का खतरा रहता है तो कुछ समय कडवी दवाई भी पीनी चाहिए ताकि हमारी सेहत बनी रहे, कुछ लोग भगवान झूलेलाल के नाम पर बिजनेस कर रहे हैं ?समाज को इमोशनली ब्लैकमेल करके धन अर्जित कर रहे हैं ? उनसे हमें बचाना होगा भगवान झूलेलाल से प्रेम करो पूजा अर्चना करो श्रद्धा भक्ति से करो ना कि दिखावे से या किसी के बहकावे में आकर या कहने पर,
जैसे हम अपने माता-पिता के बुजुर्गों की सच्चे भावना से सेवा करते हैं पूजते हैं वैसे ही हमें भगवान झूलेलाल के भी सच्चे मन से भावना से पूजा अर्चना करनी है दिखावा नहीं करना है और साथ में हमारी कुलदेवी हिंगलाज माता और इष्ट देव भगवान भोलेनाथ को भी नहीं भूलना है, गुरु की भक्ति को पाना है भगवान का दर्शन करना है तो अपने तन को मत सजाओ मन को सजाओ मन को कैसे सजाएं सिमरन से नाम के जपने से सत्य बोलने से धर्म की राह पर चलने से तन मिट्टी की काया है एक जैसा नहीं रहता है उसका रंग रूप बदलते रहता है आखिर मिट्टी में मिल जाना है उसे चमकाने की बजाय अपने मन को चमकाए तो आपका यह लोग भी और परलोक भी संवर जाएगा,