( आप भी हंस की तरह कौवैं के झुंड में रहकर कौवे बन गए हो अपने आप को पहचानो कि आप क्या हो? आशुतोष महाराज जी)
बिलासपुर/चक्करभाटा:-
श्री झुलेलाल चालीहा महोत्सव के 31 वें झुलेलाल धुनी का आयोजन कुकरेजा परिवार के द्वारा किया गया कार्यक्रम की शुरुआत रात्रि 10:00 बजे भगवान झूलेलाल बाबा गुरमुख दास जी के फोटो पर पुष्प अर्पण कर दी प्रजवलित कर आरती करके की गई, इस अवसर पर श्री पुरुषोत्तम लाल सांई धाम के पिठाद्विश्रवर, हीरानंद महाराज जी, व उनके पुत्र भागवत कथा प्रवक्ता आशुतोष महाराज जी अपने शिष्यो के साथ मुंबई महाराष्ट्र से विशेष रूप से चालिहा महोत्सव के अवसर पर झूलेलाल मंदिर चकरभाटा में पहुंचे आज के इस आयोजन में शामिल हुए अपने रूहानी दर्शन देकर सत्संग से अपनी अमृतवाणी से भजनों से आए हुए सभी भक्तों को निहाल किया स्वामी जी ने अमृतवाणी में भक्तों को भगवान झूलेलाल की महिमा के बारे में वर्णन किया की जो आप बहराणा साहब की पूजा अर्चना करते हैं या नदी तालाब में जाकर गेहूं के आटे की गोलियां डालते हो या रोटी के टुकड़े डालते हो नदी में मछली को खिलाते हो वह बड़ा ही पुण्य का काम है


और उसका फल आज नहीं तो कल आप सबको जरूर मिलेगा उन्होंने एक प्रसंग सुनाया एक गांव में गोविंद नाम का व्यक्ति रहता था प्रतिदिन वह नदी🚣💦 में जाकर 🐟मछलियों को रोटी के टुकड़े खिलाता था और साथ में अपनी अर्जिवीका के लिए पूजा पाठ करता था पर प्रतिदिन पूजा पाठ के कार्य नहीं मिलते थे इसलिए धीरे-धीरे निर्धन गरीब बन गया लेकिन उसकी दिन चर्चा में कोई भी परिवर्तन नहीं आया वह खुद न खाकर फिर भी अपने हिस्से की रोटी जाकर नदी में 🐠मछलियों को खिलाता था पर यह सब देखकर उसकी पत्नी को बहुत खीन्न हुआ कि हम इतने गरीब हो गए हैं खाने को रोटी नहीं है फिर भी वह अपने धर्म कर्म के कार्य को पीछे नहीं छोड़ रहा हैं वह गुस्से में गीता रामायण भागवत भगवान झूलेलाल की का ग्रंथ को उठाकर टुकड़े कर कर के जाकर नदी में विसर्जन कर दिया इन बातें से दुखी होकर गोविंद नदी किनारे में पहुंचा और भगवान झूलेलाल से प्रार्थना करने लगा है भगवान मेरी पत्नी ने आज अनर्थ कर दिया है सारे ग्रंथ को टुकड़े करके नदी में डाल दिए हैं और मेरी स्थिति अब ऐसी है कि अब मैं कहीं कथा करने जा नहीं सकता और अब मैं रोटी कहां से लाऊं ओर जीव जंतु मछलियों को केसे खिलाऊ जो जल में रहते हैं अब तू ही राह दिखा तू ही मेरे दुख दर्द को दूर कर इतने में दूर से एक घाघर बहती हुई आई जो बहुत चमक रही थी और उसके पास आकर रुक गई जैसे उसने घाघर को निकाला नदी से और देखा खोलकर उसमें 💎हीरे जवाहरात मोती आभूषण भरे पड़े थे और आकाशवाणी हुई की है पुत्र गोविंद जो तुमने इतने वर्षों से एक-एक रोटी लाकर मछलियों को और जीव जंतुओं को जो नदी में रहते हैं उनको खिलाता था यह वही रोटी और वह बहराणा साहब जो तुमने पूजा पाठ करके परवान किया था उसी का ही फल है जो तुझे यह सब मिला है इस कहानी का तात्पर्य यह है कि जो तुम दोगे वही तुम्हें लौटकर वापस मिलेगा आज नहीं तो कल जरूर मिलेगा इसलिए कभी भी नीराश जीवन में मत होना, अपने धर्म कर्म के रहा को मत छोड़िए और अपने भगवान पर अपने गुरु पर विश्वास कीजिए विश्वास की डोरी जितनी मजबूत होगी आपके कार्य उतने जल्दी होंगे और दुख तकलीफ तो इस पृथ्वी में आकर सबको भुगतना पड़ा है राजा हो चाहे रंक हो भगवान ने भी अवतार लिया है उसने भी दुख तकलीफ सही हैं क्योंकि दुख तकलीफ धूप और छांव जैसे हैं अपनी अमृतवाणी से भगवान झूलेलाल का भजन गया और चालिहा महोत्सव की सबको बधाइयां दी और उसकी महिमा बताई ,


आशुतोष महाराज जी के द्वारा एक प्रसंग के माध्यम से बताया कि एक हंस का बच्चा उड़ते उड़ते अपने माता-पिता झुंड से अलग होकर दूसरे जगह चला गया जहां पर कौवा का घर का निवास था और जाकर वहीं पर पहुंच गया और उनके बीच में ही धीरे-धीरे बढ़ने लगा बड़ा हुआ पर वह अपनी पहचान खो गया और कौवा की तरह काएं – काएं करने लगा एक दिन हंसों का झुंड वहां से गुजर रहा था जब नीचे नजर पड़ी इन सब कोवे में एक हंस का बच्चा बैठा हुआ था तो नीचे उतरे और एक हंस ने कहा बेटा तू तो हंस है हमारे जैसा है तो इन कौवे के बीच में क्यों बैठा है तो उस हंस के बच्चों को समझ में नहीं आया तो उसे ले जाकर नदी के सामने खड़ा करके दिखाया कि देखो इसमें अपनी परछाई तुम हमारे जैसे हो तुम कौवे जैसे नहीं हो तुम यहां रहकर अपने आप को भूल गए हो चलो हमारे साथ इस तरह आप लोग भी भगवान झूलेलाल की संतान हो आप अपने आप को भूल गए हो और इस मायावी दुनिया में और अलग-अलग पंथ्यों में भटक भटक गए हो अपने आप को पहचानो और अपने गुरु को अपने भगवान झूलेलाल को ध्यान से देखो कि आप सिंधी हो अपनी संस्कृति भाषा बोली अपने आराध्य देव अपने इस्ट देव अपनी कुलदेवी को जानो समझो और उससे जूडो और उसकी पूजा आराधना करो इसमें ही आपका भला होगा,

तिल्दा से आए चिराग कलवानी के द्वारा सिंध के सरताज संत शिरोमणि अमर शहीद भक्त कवंरराम साहब जी का स्वरूप धारण करके उनके बचपन की कहानी को भजनों के माध्यम से अपने सुंदर नृत्य से बेहतरीन प्रस्तुति पेश की किस तरह सांई सचो सतराम जी ने उनकी परीक्षा ली वह उनके कोहर खाए और उन्हें अपना शिष्य बनाया,

बहुत सुंदर नजारा था यह सब देखकर भक्तजन भाव विभोर हो गए सभी भक्तों ने इस कलाकार की तारीफ की ओर सांई जी ने सम्मान किया,
संत सांई लालदास जी के द्वारा आए हुए संत जनों का स्वागत किया गया बाबा गुरमुख दास सेवा समिति के द्वारा सम्मान किया गया कुकरेजा परिवार के द्वारा संत सांई लालदास जी का स्वागत सम्मान किया गया सांई जी ने भी उनका सम्मान किया वह भगवान झूलेलाल का छायाचित्र देकर आशीर्वाद दिया आखरी में पल्लो पाया गया प्रार्थना की गई प्रसाद वितरण किया गया आज के इस पूरे कार्यक्रम को सोशल मीडिया के माध्यम से लाइव प्रसारण किया गया हजारों की संख्या में लोगों ने घर बैठे कार्यक्रम का आनंद लिया इस पूरे कार्यक्रम को कवर करने के लिए हमर संगवारी के प्रधान संपादक विजय दुसेजा विशेष रूप से चक्करभाटा पहुंचे ओर प्रोग्राम को कवर किया संत सांई हीरानंद महाराज जी ने उनकाे आशीर्वाद दिया