गुरु तेग बहादुर साहेब जी को क्यों कहा जाता है ‘हिंद की चादर’?

विजय थावानी : गुरु तेग बहादुर के समकालीन मुगल शासक औरंगजेब था। औरंगजेब के शासनकाल में जबरन हिंदूओं का धर्म परिवर्तन किया जा रहा था। कश्मीरी पंडित इसके सबसे ज्यादा शिकार हुए।कश्मीरी पंडितों का एक प्रतिनिधिमंडल श्री आनंदपुर साहिब में श्री गुरु तेग बहादुर साहिब की शरण में मदद के लिए पहुंचा। गुरु तेग बहादुर ने कश्मीरी पंडितों को उनके धर्म की रक्षा का आश्वासन दिया और हिन्दुओं को बलपूर्वक मुस्लिम बनाने का खुले स्वर में विरोध किया। साथ ही कश्मीरी पंडितों की इफाजत का जिम्मा अपने सिर ले लिया। उनके इस कदम से औरंगजेब गुस्से से भर गया। उसने इसे गुरु तेग बहादुर की खुली चुनौती मान ली। इतिहासकार बताते हैं कि 1675 में गुरु तेग बहादुर पांच सिखों के साथ आनंदपुर से दिल्ली के लिए चल पड़े। मुगल बादशाह ने उन्हें रास्ते से ही पकड़ लिया और तीन-चार महीने तक कैद में रखकर अत्याचार की सीमाएं लांघ दी। गुरु तेग बहादुर को इस्लाम स्वीकार करने के लिए मजबूर किया जाने लगा। गुरु तेग बहादुर साहेब जी के शहीदी से पहले औरंगजेब ने उनके सामने तीन शर्तें रखी थीं – कलमा पढ़कर मुसलमान बनने की, चमत्कार दिखाने की या फिर मौत स्वीकार करने की। गुरु तेग बहादुर ने धर्म छोड़ने और चमत्कार दिखाने से साफ इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि वे अपना सिर कलम करवा सकते हैं, पर अपने बाल नहीं कटवाएंगे। 1675 ई॰ में दिल्ली के चांदनी चौक में जल्लाद जलालदीन ने तलवार से गुरु साहिब का शीश धड़ से अलग कर दिया। लाल किले के सामने आज उसी जगह पर गुरुद्वारा शीशगंज साहिब स्थित है।
इसलिए उन्हें सम्मान के साथ ‘हिंद की चादर’ कहा जाता है. गुरु तेग बहादुर की याद में उनके शहीदी स्थल पर एक गुरुद्वारा साहिब बना है. जिसे गुरुद्वारा शीश गंज के नाम से जाना जाता है.