विजय दुसेजा/सम्पादकीय : इतिहास बताता है रेलवे को 100 साल हो गये है 100 साल का इतिहास है रेलवे का विश्व में दूसरे या तीसरे पायदान पर है भारतीय रेल में करोड़ों लोग प्रतिदिन लोकल से लेकर सुपरफास्ट व स्पेशल ट्रेन का सफर करते हैं इसमें गरीब, मध्यम व उच्च सभी वर्ग की जनता सफर करते हैं। कोरोना काल के बाद रेलवे का किराया में बहुत बढ़ोतरी हुई है। पर सुधारों के मामलों में कोई वृद्धि नहीं हुई है रेलवे आम जनता से पैसा तो बहुत लेता है लेकिन उसके अनुरूप सुविधाएं देने में काफी पीछे है, हर बार नई ट्रेनें प्रारंभ की जाती है पर वे ट्रेनें चलेगी कहां पर? अलग से नई लाइने बिछाने के लीए कार्य में शीथीलता बरती जा रही है. पुरानी पटरियों में सब गाड़ियों को दौड़ाया जाता है जिसके कारण आए दिन हादसे होते रहते हैं पर इस साल का सबसे बड़ा हादसा बालासोर उड़ीसा में हुआ जो बहुत ही दुखदाई हादसा है, दो ट्रेनें और एक मालगाड़ी के आपस में टकराने से जो भीषण हादसा हुआ उससे उत्पन्न हुई तबाही को पूरा देश देखकर दंग रह गया है।आखिर इन हादसों का जिम्मेदार कौन है हर बार रेलवे कमेटी बनाता है, कमेटी सुझाव देती है पर समय के साथ साथ वह सुझाव फाइलें मैं दबकर धूल खाती रहती है उस पर अमल नहीं होता है इसकी जवाबदारी भी नहीं बनती है और जो जिम्मेदार हैं वे वापस अपने पदों में पहुंच जाते हैं आज तक किसी को सजा नहीं हुई , कोई जिम्मेदार अधिकारी जेल की सलाखों के पीछे नहीं गया। अभी तक हमने सुना नहीं है, देखा नहीं है, पढ़ा नहीं है, आखिर कब तक इंसान की जान को यूं ही भेड़ बकरियों की तरह गवाया जाएगा? अगर इस हादसे में कोई मंत्री ,मुख्यमंत्री की जान जाती तब पूरा सरकारी अमला जाग जाता पर उनको भी पता है ऐसे हादसों में जनता हैं गरीबों की मौत की कुछ कीमत नहीं होती है बस दिखावे के लिए घोषणा की जाती है मरने वाले को मुआवजा देकर खाना पूर्ति की जाती है घायलों को कुछ धनराशि देकर संतुष्टि कर दिया जाता है उन पैसे से उन गरीबों की जिंदगी वापस आ सकती है जो दुख तकलीफ उनके परिवार वालों को जिंदगी भर रहेगी क्या दूर हो सकता है ? इतने अधिकारी हैं, कर्मचारी हैं, अपनी तनख्वाह बढ़ाने के लिए, भत्ता बढ़ाने के ज्ञापन देते हैं आंदोलन करते हैं क्या कभी पदाधिकारियों ने जनता के हित के लिए कुछ सोचा कभी ज्ञापन दीया कभी आंदोलन किया कि सुविधाएं बढ़ाई जाए जनता को सुख सुविधा दिया जाए। जनता से उस एवज में जो राशि वसूल की जाती है उनके अनुरूप उनको दी जाए, आरामदायक सफर मिले, उसके लिए क्या किया? जब अपने ऊपर बात आएगी तो आंदोलन की राह पकड़ते हैं वेतन आयोग का हवाला देते हैं महंगाई का दर्द बताते हैं क्या महंगाई अधिकारी कर्मचारियों के लिए है आम जनता के लिए नहीं है सरकार रेलवे का ज्यादातर पैसा सिर्फ इन्हीं मंगाई भत्तों में जाता है और वेतन विसंगति को दूर करने में चले जाता है जिसके कारण रेलवे सुधार कार्य कर नहीं पाता है न जनता को कोई सुविधा दे पाता है आखिर इसका जिम्मेदार कौन है ? केंद्र सरकार, या रेलवे के उच्च अधिकारी जो सब कुछ जानते हुए भी आंखें बंद करके बैठे हैं? और रेलवे मैं हादसा होता है हादसे के बाद फिर से रेलवे कुंभकरण की नींद सो जाता है ओडिशा में जो रेलवे की दुर्घटना घटी है भविष्य में ऐसी घटना पुनरावृति ना हो उसके लिए सरकारों को अधिकारियों को कर्मचारियों को तत्काल कार्य योजना तैयार करना चाहिए ताकि अन्य कहीं कभी ऐसी घटना ना हो और दोबारा कुंभकरण की नींद में सोने की जरूरत नहीं है बल्कि अर्जुन की तरह लक्ष्य को साधने की जरूरत है जनता को सुख सुविधाएं मिले इसके लिए कार्य हो अब वक्त की पुकार है जागो जागो और कार्य करो जनता के हित के लिए करो न कि अपने हित के लिए।