1980 की पूर्ण सत्य घटना दक्षिण भारत में एक भक्त के सरल भक्ति विश्वास पर भगवान इतने द्रवित हुए कि उसे बचाने के लिए स्वयं अदालत में गवाही देने आ गए l एक भक्त बिल्कुल सीधा-साधा सरल उसका नाम ही पड़ गया भोला! उससे कोई भी बात पूछो तो वह कहता रघुनाथ जी जानें! गांव में श्री रघुनाथ जी के मंदिर में सेवा करता था। जब बेटी बड़ी हुई ,तो दो बेटों ने कहा,,, पिताजी आप सेठ जी से कर्ज लाइए, विवाह के बाद हम खूब परिश्रम करके रूपए चुका देंगे। भोला ने कहा ठीक है। वह नगर के सेठ साहूकार के पास गया और एक तय ब्याज दर से उसने रकम उठा ली। बेटों ने खूब खेती में मेहनत की और कुछ समय बाद एक दिन कहा,, पिताजी रुपए जमा हो गए हैं, आप देकर आएं। भोला उसी समय सेठ जी के पास गया, पूरी रकम ब्याज सहित भुगतान की। सेठ जी ने कहा यह लो तुम्हारी रसीद! तो भोला भक्त के मुख से निकल गया रघुनाथ जी जानें! सेठ जी ने सोचा यह तो बिल्कुल नासमझ है! उसके मन में बेईमानी आई और कहा,,, पानी तो लाना। भोला गया, सेठ जी ने रसीद छिपा ली और एक रद्दी कागज का टुकड़ा पुराना रख दिया और भोला उसी को रसीद समझकर घर ले आया। भगवान रघुनाथ के चरणों में रख दी, फिर सेवा करने लगा। कभी झाड़ू लगाए कभी बर्तन मांजे, कीर्तन करे और भगवान को बार-बार निहारता जाए। सेठ जी ने अदालत में मुकदमा दायर कर किया। भोला हाजिर हुआ।
जज साहब ने पूछा तो रसीद दिखाई। जज साहब ने कहा यह तो रसीद नहीं है! भोला रोने लगा, जब साहब ने कहा लो मत! यह बताओ कि जब तुमने रुपए दिए तुम दोनों के अलावा और कोई था? तो भोला ने सहज स्वभाव कह दिया,,, हुजूर सिवाय रघुनाथ जी के और कोई नहीं था! जज साहब ने समझा इनके नगर में कोई रघुनाथ नाम का व्यक्ति है, तो उन्होंने उनके नाम पर सम्मन जारी की, अर्थात गवाही में रघुनाथ जी का नाम लिखा दिया। अब चपरासी पूरे गांव में घूमें कोई आदमी रघुनाथ जी के नाम का मिला ही नहीं। घूमते घूमते किसी से पूछा तो उसने कहा रघुनाथ जी का मंदिर है! चपरासी वहां गया पुजारी जी बैठे थे पूछा,, यही रघुनाथ जी का मंदिर है? पुजारी जी ने कहा,, हां । यह लो सम्मन। अब पुजारी जी ने देखा, भगवान रघुनाथ के मंदिर में सम्मन आया है तो हस्ताक्षर पुजारी जी ने कर दिए और सम्मन भगवान के चरणों में रखकर कहा,, प्रभु आपके लिए पोषाक, प्रसाद, गहने कई बार आए होंगे पर सम्मन पहली बार आया है, प्रभु अब अपने भक्त की लाज रखना। अब फिर से अदालत लगी भोला आरोपी के रूप में हाजिर हुआ, सेठ जी भी बैठे थे। जज साहब ने कहा भोला तुम्हारा गवाह कहां है? भोला भक्त ने कहा हुजूर यहीं कहीं होंगे वह तो सब जगह होते हैं। जज साहब ने कहा,,, पुकार लगाओ! दरबार में आवाज लगाई,,,, रघुनाथ हाजिर हो हाजिर हो हाजिर हो,, तो अचानक भक्त वत्सल भगवान प्रेम के अवतार दूर से एक वृद्ध के रूप में आए। हाथ में छड़ी लिए गले में तुलसी की माला पहने माथे पर चंदन का तिलक लगाए फटे कपड़े पहनकर इशारा करते हैं कि मैं ही रघुनाथ हूं। “रघुनाथ हाजिर हो, हाजिर हो हाजिर हो ऐसे तीन नारे जो लगाए हैं, तो चाल अटपटी, एक वृद्ध की झुकी सी देह, दुपट्टी फटी सी, सीस बांधे धर दाएं हैं। हाथ में लिए छड़ी, तुलसी की लिए माल, माथे पे रोरी चारू चंदन चढ़ाए हैं, साहब के सामने ‘विनीत’ चपरासी साथ आज रघुनाथ जी गवाह बन आए हैं।”
भगवान गवाह के रूप में अदालत में हाजिर हुए! भक्त भोला की तो प्रेम की समाधि लग गई। सेठ जी हैरान परेशान कि यह कौन आ गया?? जज साहब ने पूछा आप ही रघुनाथ जी हैं? भगवान श्री राम जी बोले,,, हां हजूर मैं ही रघुनाथ हूं। जब सेठ जी ने पैसे लिए आपने देखा! भगवान ने कहा हां मैंने देखा, सेठ जी ने मुझे नहीं देखा। मेरे ही सामने भोला ने पैसे चुकाए रसीद अभी तक सुरक्षित है। सेठ जी के घर में तीन अलमारियां हैं बीच वाली अलमारी में आठ नंबर के रजिस्टर में रसीद पड़ी हुई है। जज साहब ने तुरंत आदमी भेजे और रसीद मिल गई। सेठ जी को सजा दी गई भोला को बाइज्जत बरी किया गया और गवाह चले गए। काम तो हो ही गया था। चपरासी ने जज साहब से कहा, हुजूर! जिसने हस्ताक्षर कि वह यह आदमी नहीं था! जज साहब ने भोला से पूछा भोला जिंदगी में आज तक ऐसा गवाह नहीं देखा जिसकी याददाश्त इतनी तेज हो। यह बहुत अच्छे आदमी थे! यह रघुनाथ कहां रहते हैं? भोला तो सजल नेत्र बोला,, हुजूर जहां हम रहते हैं, तो तुम कहां रहते हो, जहां रघुनाथ जी रहते हैं! मतलब यह कौन हैं, पुजारी की मंदिर के मालिक? भोले ने कहा,,, जज साहब यह वही है जो मंदिर में बैठे हैं! बात जब समझ में आई तो जज साहब अपने बंगले पर लगातार रोने लगे। आसपास के लोग इकट्ठे हो गए कहने लगे,, आपको तो प्रसन्न होना चाहिए कि आपको भगवान ने दर्शन दिए। जज साहब ने कहा मैं बहुत प्रसन्न हूं कि मुझे भगवान के दर्शन हुए! तो क्या इस बात का दुख है कि भगवान चले गए? जज साहब ने कहा यह भी दुख नहीं कि वह चले गए, दुख तो मुझे इस बात का है जिनकी अदालत में बड़े बड़ों को हाजिर होना पड़ता है वह मेरी अदालत में हाजिर हुए और खड़े होकर बात करते रहे और मैं साहब बना कुर्सी पर बैठा रहा। “सुख होत जु दरस दिए को भयो, दुख नाहीं न जो तज जात रहे! कुर्सी पे बना मैं जज बैठा रहा, और जगदीश खड़े समझाते रहे।” वो मुझे हुजूर हुजूर कहते रहे, वह खड़े रहे मैं बैठा रहा। ये अपराध मैं कैसे भूल सकता हूं। उसी दिन जज साहब ने नौकरी से इस्तीफा दे दिया और शेष समय वृंदावन में आकर बिताया। कभी जिंदगी में कुर्सी पलंग किसी पर नहीं बैठे धरती पर ही सोते। लगभग 22 साल पहले वृंदावन में उनके दर्शन होते थे लोग कहते थे जज साहब आ गए। सरल स्वभाव निष्कपट व्यक्ति पर भगवान इतने प्रसन्न होते हैं तभी तो उनके नाम हैं,, भक्तवत्सल, भक्तानुकारी, भक्त-भक्तिमान भक्त-तत्पर आदि आदि! भगवान पर ऐसा विश्वास होना चाहिए जैसा भक्त भोला ने किया! यह कथा प्रसंग श्री धन गुरु नानक दरबार में कीर्तन सत्संग में बताए गए। 5 सितंबर परम संत श्री मेहरबान सिंह जी के निर्माण दिवस के उपलक्ष में यह कीर्तन सत्संग और प्रभु का लंगर प्रसाद किया गया जिसमें श्रद्धा भाव से संगत ने हाजिरी लगाई।